कुछ लिखता हूं फिर उसे मिटाता हूं।
तुमको नहीं मैं खुद को आजमाता हूं।
सोचता हूं आखिर ऐसा क्यों कर हुआ?
तेरे आगोश से निकल, मैं क्या रह गया?
तन्हाई की चादर ओढ़े,
मैं खामोशी से बातें करता हूँ,
हर आहट में तेरा नाम ढूँढता हूँ,
सन्नाटे में अपनी साया से डरता हूँ।
वो जो उम्मीद तुमसे थी,
अब धुंधली सी लगती है।
जैसे कोई सपना आने से,
पहले निगोड़ी नींद टूटती है।
हर मोड़ पर खुद को ही खोता गया,
जीवन कोई भूल-भूलैया बन गया
तेरी यादें जब से मेरी साँसों में घुल गई हैं,
धड़कने उससे बचकर निकलना भूल गई।

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