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Itihas ka kitab lagti hu

 

Itihas ka kitab lagti hu

फोन पर आॉनलाइन देखूं वगैर बात किए लौटूं,

ना मैसेज,ना कोई पोस्ट दिल को समझा के लौटूं।


कॉल का तो इंतजार भी अब मज़ाक सा लगें,

रिश्ते पर ही खड़ा हर पल अब सवाल सा लगे।


कभी तेरा नाम सुनते होंठों पर मुस्कान खिलती थी,

अब सारे वो इमोजी, चैट मुझे मुंह चिढ़ाते से दिखते।


नोटिफिकेशन के दुर्व्यवहार देखो नोटिस छुपा देते।

कोई सुधी लेनेवाला नहीं है तेरा ऐ अलर्ट दे बता देते।


पुराने चैट को पढ़ते- पढ़ते पिछे चलती जाती हूं।

अब तो मैं, मैं नहीं इतिहास की किताब लगती हूं।


तुम्हारी तस्वीर कुछ बदला-बदला सा लगता है।

ओरिजनल नहीं डिजिटल दुनिया का लगता है।


गुड मॉर्निंग, मिस यू की रिंगटोन चुभती सी लगती है।

बहुतों को लिखा होगा तुमने एक स्पैम सी लगती है।




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