स्त्री किसी की नहीं सुनती, कभी सोचा है आखिर क्यों ?
ऐसी औरतो को सब जिद्दी, घमंडी की उपाधि दे देते हैं। ऐसा नहीं वह समाज को नहीं मानती या परिवार को वल्कि उनके अंकुश से क्षुब्ध होकर सुनना बंद कर देती है।
ऐसा भी हो सकता लोगों की सुनते-सुनते उसके कान बहरे हो गए हो, अब वह केवल अपने अंदर की आवाज ही सुन पा रही हो। उसकी बेचैनी भरी आवाज भी किसी ने नहीं सुना हो। बग़ावती रवैया के पीछे लोगों को सुनना और उनके सलाह पर अमल करते हुए चलना जिम्मेदार हो।
दूसरे शब्दों में लोगों की आवाज में उसे अपना अस्तित्व खोता नज़र आया और उसने सोचा चलो अब अपने मन की ओर चलते हैं शायद वही कहीं शांति मिलें।
उसने चुप्पी की चादर में अपने आप को ढंक लिया। बस समाज को बौखलाहट हुई-- समाज को हमेशा सबकी सुनने वाली के रुप में औरत चाहिए। समाज ने उसे घमंडी कह दिया, कहे भी क्यों नहीं?
शुरू से उसे आज्ञाकारी बने रहने की सलाह देने वाला समाज कैसे बर्दाश्त कर सकता कि एक औरत घोषणा करें -- वह भी एक इंसान हैं कोई सामान नहीं जिसे जुए में दाब पर लगा दिया जाए। औरत को भी अधिकार मिले अग्निपरीक्षा लेने वाले को अग्निपरीक्षा देने की डिमांड रखें।
क्रमशः....

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