इतना बेबस न था मैं कभी।
इतना लाचार भी कहां था।
लाचारी ने ही मुझे बेबस बना दिया।
लाचारी बेबसी रास्ता में खड़ा था।
अच्छे वक्त को लौटने ना दिया।
तेरा बंदी हो कर भी दिल तुझ पर ही मरता है।
रोकूं इसे तो यह बगावत मुझसे ही करता है।
हे प्रभु पहले सा विश्वास मुझे दे दो।
खोया बचपन ना सही पुराने वक्त मुझे दे दो।
घर से निकलूं तो घर की चाबी पड़ोसी को दे दूं।
हाथों से लिखे खत की खुशबू चैट में मुझे दे दो।
Fb पर मीर गालिब की शायरी की महक दे दो।
बच्चों को कुछ सुनने की हम जैसी हुनर दे दो।
दिल की मेरी मायूसी तुम तक ना पहुंचे।
इसी खातिर झूठी मैं तुमको पैगाम देती हूं।
आंख के आंसू दिल के जख्म तक जब पहुंचे।
दिल को मैं तेरी सलामती का पैगाम देती हूं।
गिरे लूढ़के चाहे खत्म हो जाए मेरे आंसू।
आंखों के हरएक मोती मैं तेरे नाम करती हूं।
कोई तो मिले ऐसा जो कहे तेरी कमियां बड़ी खूबसूरत है।
फुर्सत बेचे थे जिंदगी जीने के लिए।
जिंदगी गिरवी पड़ी है जीने के लिए।
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