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लोककवि राष्ट्रकवि से उम्मीदे करना छोड़ दो


संतान जब ख़ुद से निर्णय लेने लगें।

अनुभव अपने उनपे थोपना छोड़ दो।

अपने हाथ में जब कुछ है ही नहीं।

भविष्य की चिंता करना छोड़ दो ।

इच्छा और क्षमता में फर्क दिखें ।

अपने आप को कोसना छोड़ दो ।

दोस्त जब तुमसे बचकर निकलने लगे ।

अपने दिलो दिमाग़ पर लेना छोड़ दो।

मद में रहनेवाले कभी भी तेरे होंगे नहीं।

मिलें ना सदमा उम्मीदें करना छोड़ दो।

लोककवि राष्ट्रकवि के चक्कर में लगो नही।

बिके हुए है सब तुम ताली बजाना छोड़ दो।

लड़की जब लड़की संग शादी रचाने लगी।

अब तो तुम परिवार नियोजन की चिंता छोड़ दो।

लाख समझाने पर भी जो समझें नहीं।

ऐसे दिवाने को ख़ुदा के लिए छोड़ दो।

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