सब अपने ही लिए फिक्रमंद हैं यहां
अपना ज़ख्म किसे दिखाऊं।
अपने गिरेबान में झांकने की जहमत नहीं उठाई जिसने।
भरी महफ़िल में उसे दास्तां ए मुहब्बत सुनाऊ।
जिसकी महफ़िल में ज़लील हुआ मेरा किरदार।
तुम्ही कहो उस महफ़िल में पलटकर जाऊं तो कैसे जाऊं।
वो अल्फाज कहां से लाऊं, जो अपना दर्द बताऊं।
दर्दे दिल छुपाने को अपना, मुस्कुराता तस्वीर लगाऊं।
हाथ मिलाने से भी इनकार कर दिया हो, उससे कैसे कंधे से कंधा मिलाऊं।
दिन भर सबको हंसाने में गुजारू, रात भर खुद को बेइंतहा रुलाऊं।
इस शहर इस गली को छोड़ तो दूं, पर जाऊं तो कहां जाऊं?
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