लाल रंग और तुम
जानती हूं नापसंद है तुम्हारी
मेरे जीवन के दो पहलू
जब भी पहनू लाल परिधान ।
जानती हूं नापसंद है तुम्हारी।
ऐ लाल रंग में बस गए हो तुम।
कैसे गुस्से में बदला था लाल रंग के वस्त्र।
पहनी थी तुम्हारे पसंद की नीली साड़ी।
बुरा लगा तो था तेरा मना करना।
अब तुम नहीं हो पहन सकती हूं।
पहनती भी हूं तुमको चिढ़ाने को।
ना मैं ही पूछ पाई ना तुम ही बता पाए।
आखिर ऐसा क्या है इस लाल रंग में।
अब सोचती काश मैं जान पाती राज।
मैं हमेशा जुड़ी रहीं इस रंग के साथ।
तुम मेरे दिल के पास रहें इस रंग में।
चलो कहीं दूर चलते हैं इस चटक रंग से।
कहीं दूर नीले गगन की छांव में चलते हैं।
हरे-भरे बागों में सुगंधित फूलों के बीच।
चंद अविस्मरणीय क्षण यादों में समेट लाते हैं।
जब भी हम अलग-अलग होंगे यादें साथ होगी।
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| जानती हूं नापसंद है तुम्हारी |

1 Comments
Great
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