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हम अलग-अलग ग्रह के थे

 


तुम चले गए अपने कक्ष में 
अलग-अलग ग्रहों से थे हम

मैं भी कहां जानती थी कुछ।

तुम्हारे खुबसूरत चेहरे नीली 

आंखें देखकर पहले डर गई थी। 


पता चला ज्यादा गोरे हो तुम।

इसलिए तुम्हारी आंखें ऐसी हैं।

तब क्या पता था सारी उम्र मैं,

उसी में डूबकर रह जाऊंगी।


लड़ते - झगड़ते चिढ़ते - चिढ़ाते,

एक दूसरे के करीब आते चले गए।

हमारे बीच में प्रेम प्यार जैसा कुछ 

पनप रहा है तुम कैसे जान गए थे।


समझ शायद मैं भी रही थी,

स्वीकार करने को तैयार नहीं थी।

हां मैं सच को झूठला रही थी।

तुम्हें बचपन का दोस्त बता रही थी।


दिल और दिमाग के युद्ध में।

मैंने दिमाग से जीत पाई थी। 

दिल को जानकर हार दिया।

तुमने दिमाग लगा कर जीते

मेरे दिल को ही जीत लिया।


हम अलग-अलग ग्रह के थे।

साथ रहने की फितरत कहां।

याद है तुम दिल से जीते थे।

तुम चले गए अपने कक्ष में।


मेरा सुख चैन लेकर गए थे।

मैं भटकती रही सारे जहां में

कक्ष से भटकी ग्रह की तरह।

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