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जिंदगी चलती रही मैं वहीं खड़ी रही


सफ़र में तेरे साथ ना चल

पाई प्रिय

मेरी मौन तेरे चंचलता पर भारी पड़ी प्रिय

रुकावट से घबराकर भागी थी।

ताउम्र मुझको इसका मलाल है।


मेरी मौन तेरे चंचलता पर भारी रही।

कैसे कहूं सफ़र तेरे वगैर कैसी रही।

जिंदगी चलती रही मैं वहीं खड़ी रही।

हर मोड़ पर मुड़ कर तुम्हें तकती रही।


चिलचिलाती धूप में तेरे सा छांह खोजती रही।

सर्द हवाओं के झोंके में भी तेरा साथ ढूंढती रही।

आती - जाती सांसे मेरी, याद तेरी दिलाती रही।

कोई नाम मेरा पुकारे, तो याद तेरी ही आती रही।


सफ़र आसान तो नहीं है प्रिय।

मन को स्थिर कर चलना होगा।

ज़ख्म भरने का इंतजार ना कर।

वक्त के भरोसे भी ना रहना होगा।

चोट पर खुद से मरहम रखना होगा।


पता तुम्हारा पास नहीं तुमको बुलाऊं तो कैसे?

मन के भाव, एहसास तुम तक पहुंचाऊ कैसे?

वैसे तो तुम संग मेरे हर पल ख्यालों में रहते हो।

सब दुःख दर्द सुनते हो पर तस्वीर बने रहते हो।


ठोकरें खाकर खुद को संभलना कहां आसान है।

तोहमतें लगाने वाले को भूलना कहां आसान है।

रास्ते में छोड़ने वाले को भूलना नहीं आसान है।

खो दिया तुमको सखे मुझे ताउम्र इसका मलाल है।

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