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वर्षों पहले की सूरत आंखों में बसा रखी है

आंख से नहीं दिल से पहचाना होगा 

इतने दिनों में तुम कितने बदल गए होगे।

आंख से नहीं दिल से ही पहचानने होगें।


वर्षों पहले की तेरी सूरत आंखों में बसी है।

खयालों में मैंने तुमको बदलने ना दिया है।


दिल से पूछा तुम उसके कौन लगते हो।

दिमाग बोल उठा यह उस का ही तो है।


तेरे लिए धड़कता है याद उसीको करता है।

तुम को भी छला करता है बड़ा बेगैरत है।


तुमसे टकराना तो बस इत्तेफाक था।

वहीं ठहरकर रह जाना मेरा प्यार था।


दिमाग को समझता हूं वह मेरा कोई नहीं।

मुझे उससे इश्क प्रेम प्यार जैसा कुछ नहीं।


पर दिल कहता है काश कहीं से वो आ जाए।

दिल और दिमाग के युद्ध में मैं बिखर जाता हूं।


नहीं जानता तुम से मिलना सही था या ग़लत।

पर मैंने तो दिल ही नहीं खुद को भी हार दिया।



कितना संक्षिप्त सा मुहब्बत था तुम्हारा। 

कुछ साल महीना में सिमटकर रह गया।


प्रिय देखो कितना विस्तृत प्रेम है मेरा।


जो अल्फ़ाज़ बनकर पन्नों पर पसरता गया।


मेरी प्रीत देखो कागज़ कलम में जी गया।

हम तुम ना होगें फिर भी यह रह जाएगा।


एक नाकाम मुहब्बत का फ़साना सुनाएगा।

दो तरह के किरदार होते सबको समझाएगा।


मैं कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रही सच बता रही।

मैं बहुतों वाली तुम्हारी दुनियां से बाहर आ रही।

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