KABHI KOI EHSAAN NAHI KARNA
मुहब्बत का कर्जदार हूं चूका दूंगा
KABHI KOI EHSAAN NAHI KARNA
1) रब ने नवाजा मुहब्बत से हमें।
हम रब से दौलत मांगते रह गए।
जिंदगी जीने के लिए बख्शा था।
हम जिंदगी गुजारते ही रह गए।
मौत सामने देख
रब से थोड़ी मुहलत मांगते रह गए।
कफ़न जनाजे कब्र चिता से डर गए।
कब्र में मुहब्बत के अफसाने रह गए।
2)
हमारी तुम्हारी मुहब्बत में फ़र्क है तो बस इतना है ।
मैंने तुमसे की और तुमने मुझसे भी मुहब्बत की है।
इश्क की फितरत ही है कुछ ऐसी।
शरीफ़ों को मिलने से रही।
कमीनो से सम्भलने से रही।
3)
सभी रिश्ते मुक्कमल नहीं होते दिल को समझाया है।
जब - जब तेरी बात आई दिल ने मुझे हर बार हराया है।
जानती हूं अब कभी नहीं तंग कर सकोगे मुझे।
मेरी कान तुम्हारे आवाज को सुनने को तरस जाएंगे।
सोचा कब था प्रेम की परिभाषा ही गौण हो जाएंगे।
4)
खो जाए न याद तुम्हारी।
ज़ख्मों को भरने न दिया।
बैठी रही उस जगह अब तक।
जिस जगह आ गई थी चलकर।
चलती रही उस राह पर मैं।
घास को उस जगह उगने न दिया।
मिट न जाए कहीं याद तेरी
उन दुश्मनों से भी मिलती रही मैं।
जिसने हमें मिलने न दिया।
5)
नींद में न आ जाए कोई और चेहरा
पलकें झपकाईं आंखों को सोने न दिया।
अश्क को आंखों में ही दफ़ना दिया।
तेरी याद को समेटा बहने ना दिया।
तेरी महफ़िल में रहना न गवारा था
अपनी दुनिया में किसीको रहने न दिया।
कट ही जाएगी ज़िंदगी एक दिन उसे
खुश होकर कटने का मौका न दिया
6)
बड़ी हसरत थी तुझे देखूं अपने आंखों के आईने में।
जाने कैसी दिखती होगी तेरी तस्वीर मेरी आईने में।
7)
तुम्हारे मुहब्बत का कर्जदार हूं।
क़र्ज़ ही तो है चुका दूंगा तुमको।
कभी कोई एहसान मत करना।
एहसान चुकाने की जुर्रत नहीं।
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