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जमाना क्या जाने वह कैसा इंसान है

मुस्कराता रहता है सबके सामने 

कभी- कभी कोई हादसा इंसान को ऐसे तोड़ जाता है।

इंसान खामोश हो जाता जरूरी बातें भी नहीं करता है।

लोगों को ऐसा लगता वह खामोश है।

खामोशी में ही अब उसकी आवाज है।


मुस्कराता रहता है वह सबके सामने।

रात भर तकिया पर बरसात होती है।


वह ज़माने में सबसे नाराज़ लगता है।

ऐसा लगता है जिंदगी उससे नाराज़ हैं।


कभी ऐसा लगता है उसे, मौत शानदार है।

फिर लगता जाने क्या, मौत के उस पार है।


लिखने को तो उसने सब कुछ लिखा होगा।

पढ़नेवाले ने क्या और कितना समझा होगा।


सबने कहा उसे किसी से मुहब्बत नहीं होगा।

किसी ने कहा शायद मुहब्बत बे-हिसाब होगा।


मैंने जब भी उस शख्स को अजनबी कहा।

दिल ने पलट कर कहा ऐ दिल की लगी है।


मैंने समझाया उसका पल दो पल का साथ है।

दिल ने पूछा मुझपर कितना तुमको विश्वास है।


मैंने कहा वह मेरी भूल है।

सबने कहा यह मेरा हार है।


बात काटकर मेरे दिल ने कहा।

तेरी भूल मेरे खुदा को कबूल है।


जिसको तू भूल और हार कहता है।

तेरी उस हार में छुपा उसका प्यार है।


जमाना क्या जाने वह कैसा इंसान हैं।

बहुतों के होते हुए भी मेरे लिए खास है।

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