जीवन में तीन बाधाएँ और उनकी प्रासंगिकता
तीन बाधाएं जो हमारे दैनिक जीवन के अनुभवों से गहराई से जुड़ी हुई हैं। ये बाधाएँ हैं:
प्रमाद (लापरवाही)
आलस्य,
अविरति (इंद्रियों पर नियंत्रण का अभाव)
1. प्रमाद
प्रमाद यानी लापरवाह रवैया। यह वह स्थिति है जब हमें सही-गलत का ज्ञान होने के बावजूद, हम जानबूझकर गलत रास्ता चुनते हैं। इसके उदाहरण अनेक हैं:-
डायबिटीज़ से ग्रस्त व्यक्ति जानते हैं कि मीठा उनके लिए हानिकारक है, लेकिन #चलता है# जैसे लापरवाह रवैये के कारण वे इसे खा लेते हैं। परिणामस्वरूप, उनकी सेहत बिगड़ती चली जाती है।
एक अन्य उदाहरण हमें यह स्पष्ट है कि गुस्से में बोलना दूसरों को चोट पहुँचा सकता है, फिर भी हम आवेग में ऐसी बातें कह देते हैं, जिनका पछतावा हमें बाद में होता है।
अपने विचारों, कर्मों और रवैये के प्रति सचेत रहना अत्यावश्यक है। प्रमाद हमें न केवल असंतुलन की ओर ले जाता है, बल्कि हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।
2. आलस्य
आलस्य की प्रवृत्ति से शायद ही कोई अछूता हो। यह वह स्थिति है जब हम हर कार्य को 'कल' पर टालते रहते हैं, और 'कल' कभी आता ही नहीं।
यहां यह भी याद रखना जरूरी है - कल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में प्रलय होत है बहुरी करेगा कब? कल पर टालने की प्रवृत्ति आलस्य की उपस्थिति है।
दिनचर्या और दृढ़ निश्चय से आलस्य को हराने का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।
सार- आलस्य पर विजय पाने के लिए अनुशासन और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। इससे जीवन में प्रगति संभव है। इस पर विजय पाकर आप जिंदगी को व्यवस्थित और ऊंचाई पर पहुंचा सकते हैं।
3. अविरति ( विराम का अभाव/ आशक्ति)
अविरति यानी इंद्रियों पर नियंत्रण का अभाव। आज के समय में जब बहु-संवेदी विकल्पों की भरमार है, यह बाधा बेहद प्रासंगिक है। इंद्रियों पर नियंत्रण रखें बिना जीवन नर्क बन सकता है।
हम टीवी शो देखने, गपशप करने या मनचाहा भोजन खाने में इतना उलझ जाते हैं कि अपनी इंद्रियों को आराम देना भूल जाते हैं। नींद की पुकार को अनदेखा कर टीवी देखने, जीभ के वशीभूत होकर ऐसे भोजन ग्रहण करना जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, जीभ की जिद पर पेट भर जाने के संकेत की अनदेखी करना या फिर अनावश्यक बातों में समय गंवाना ये अविरति के परिचायक हैं।
जब प्रमाद और अविरति साथ मिलते हैं, तो परिणाम खतरनाक हो सकता है। इसे आलस्य से जोड़ें, तो यह संयोजन व्यक्तिगत और मानसिक विकास को पूरी तरह रोक सकता है। इसे रोक नहीं पाने की स्थिति इतनी खतरनाक हो सकती है इंसान को अवसाद में ले जा सकती है।
सार- इंद्रियों के नियंत्रण की कमी हमें भटकाव की ओर ले जाती है। इसे सावधानी और ध्यान के माध्यम से संतुलित करना आवश्यक है। योग, ध्यान में आप इसे संतुलित करना जान लेते हैं।
योग, प्रगति का वास्तविक अर्थ
योग का मतलब केवल योगासनों में निपुणता हासिल करना नहीं है। यह भीतर की यात्रा है, यह जानने का प्रयास कि "मैं कौन हूँ।"
योग यात्रा है बाहर से भीतर की ओर चलना, अपने आप पर, अपने कर्म, अपने इंद्रियों को पहचानना।
योग हमारे मन, शरीर और आत्मा का मिलन स्थली है।यह एक ऐसा संतुलन है जहां हम स्वयं और दूसरों से बिना किसी अपेक्षा या निर्णय के प्रेम कर सकें। यह हमें संपूर्णता और शांति की ओर ले जाता है।
प्रेम वह है जिसमें कुछ पाना या खोना नहीं। प्रेम केवल प्रेम हो, हर प्राणी के लिए। शारीरिक प्रेम से सर्वथा भिन्न आंतरिक प्रेम तक यानी खुद से ख़ुदा तक पहुंचाने वाला होता है। योग इस प्रेम तक पहुंच पाने में इन तीन बाधाओं से बचना सिखाता है।
नोट- बाधाएं 6 है अगली बार 3 बाधाओं को देखेंगे।
निष्कर्ष :
प्रमाद, आलस्य, और अविरति को समझकर, और इन पर विजय प्राप्त करके हम योग और जीवन की गहरी सीख को आत्मसात कर सकते हैं। यह यात्रा हमें खुद को पहचानने और जीवन में संतुलन स्थापित करने में मदद करती है।
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