मंदिर की देहरी है चुप खड़ी।
तेरी मूर्ति मंदिर से अदृश्य हुई।
तू छलिया है जाने कहां गया।
अब क्या खोजें मन मंदिर में।
क्या चुरा सकेगा कोई इसे।
आस्था तो बसती है मन में।
विश्वास पर भक्ति टीकी हुई।
आस्था विश्वास वगैर तो यह।
बस एक साधारण पत्थर है।
पत्थर था तू या विश्वास मेरा।
कान्हा तुम मंदिर में बैठे हो।
बाहर झांकू या अपने अंदर।
इस रहस्य में है कई प्रश्न खड़े।
अनुत्तरित प्रश्न कई है यहां पड़े।
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