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उर्दू सीखने का जुनून -भाग 3 / हेडमिस्ट्रेस से ज्यादा TRP का तड़का

 

ख़बर बनते-बनते रह गए

घड़ी यानी समय का ख्याल आते हम भूखे-प्यासे विद्यालय की तरफ भागे।

हम जब स्कूल की चौखट लांघकर पहुंचे, तब तक क्लास की घंटी अपना समय पूरा कर चुकी थी।


सबसे पहले चपरासी उदासी बाला ने बताया—“हेडमिस्ट्रेस ने आप चारों को आफिस में बुलाया है।


हमारी असली परीक्षा तो अब शुरू होने वाली थी—हेडमिस्ट्रेस जी ने हमें देखकर वह रूप धारण कर लिया जिसे बोल-चाल भाषा में ‘आग बगुला’ कहा जाता है।


धड़कनें अचानक घुड़सवार बन गईं, सांसे मैराथन दौड़ने लगीं, और हम चारों गुरुजन ऐसे सिकुड़े जैसे टिफिन में रखे पराठे दोपहर तक सिकुड़ जाते हैं।


सोचती हूं अगर आज का ज़माना होता,🤔 तो न्यूज चैनल वाले हेलीकॉप्टर से उतरते, एक्सक्लूसिव ब्रेकिंग न्यूज़ कुछ यूं होती—


**“तीन शिक्षिका और एक (मुस्लिम शिक्षक) फरार ! लव जिहाद का नया मोड़!”**

  

फिर विशेषज्ञों की फ़ौज आती, स्टूडियो में गरमागरम बहस होती, और लोग चाय की बजाय इस 'शिक्षक-गेट टूगेदर' का रस पीते।


**तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाएं** – किसी भी मुद्दे पर चर्चा करते वक्त लोग भावना में बह कर अपनी रोटी सेंकने लगते हैं। हम उग्रता और पूर्वाग्रह से घिरे रहते हैं और आज की मिडिया - मास्सा अल्लाह 😀 जिस विषय का दूर - दूर तक कोई संबंध नहीं उसे भी धर्म में घसीट लेती हैं।


अगर किसी सामाजिक समस्या पर चर्चा हो रही है, तो इसे नैतिकता, कानून, या सामाजिक मूल्यों के हिसाब से देखा जाए, न कि धार्मिक संदर्भों से।

मीडिया खबर को सनसनीख़ेज़ बनाने के लिए अनावश्यक रूप से धार्मिक मामला ले आती है।


असल चुनौती यह नहीं है कि धर्म का ज़िक्र आता है, बल्कि यह है कि उसे अनावश्यक रूप से टकराव का माध्यम बना दिया जाता है। अगर संवाद अधिक जागरूक, तर्कपूर्ण और समावेशी हो, तो बहस ज़्यादा अर्थपूर्ण बन सकती है।  


हर मुद्दे में धर्म का तड़का लगाकर उसे सनसनीखेज़ बनाना आज के दौर का नया रोग बन चुका है। चाहे स्कूल की घंटी बजनी हो या किसी के पड़ोसी की छत पर बिल्ली कूद जाए, कुछ लोगों को जब तक उसमें धर्म की लाठी न घुमा दी जाए, तब तक उन्हें चैन नहीं आता।  


समाज में विचारों की विविधता का सम्मान करना चाहिए, लेकिन इसे जबरन एक धर्म-युद्ध की शक्ल देना?

यह है आज का हमारा सामाजिक दायित्व 🙏

हमारी TRP वाली मिडिया अपना दायित्व भूल गई, इससे तो असल मुद्दे ही गड्ढे में गिर जाते हैं, और बचता है बस उन्माद का धुआं।  


धर्म का मूल उद्देश्य तो हमें जोड़ने का था, लेकिन जब हर न्यूज़ हेडलाइन में इसे घसीट कर खड़ा कर दिया जाता है, तो असली संवाद वहीं दम तोड़ देता है। ऐसा लगता है जैसे बहस खत्म हो गई—अब सिर्फ नारेबाज़ी बची है।  


सवाल यह है कि हम आगे क्या चाहते हैं—सोच-विचार, तर्क और सच्चे मुद्दों पर चर्चा, या फिर हर बात में धर्म की रस्सी कसकर खींचना?


आपनी शैली में कहूं तो—**"हेडमिस्ट्रेस की नाराज़गी से डरना सही था, लेकिन न्यूज़ चैनलों की 'धर्म गाथा' से बचना उससे भी ज़रूरी!"** 😆


भगवान की कृपा से वो ऐंटेना वाला दूरदर्शन का ज़माना था, जब दूरदर्शन पर बिना TRP के खबरें आती थीं—स्पष्ट, संयमित और बिना मिर्च-मसाला।


व्यक्तिगत रूप से हेडमिस्ट्रेस बहुत ही संभ्रांत महिला थी। **संवाद का स्तर ऊंचा रखते हुए**


उन्होंने कहा आप लोगों की घंटी थी ? समझना चाहिए आप क्लास छोड़कर पार्टी करने जा रहे हैं, यह शोभनीय है?


हेडमिस्ट्रेस जी ने हमें गैर-जिम्मेदार करार देते हुए वो लंबी स्पीच दी, जिसकी लंबाई से मेट्रो रेल का ट्रैक भी शर्मा जाए।  

हम सुनते रहे, सिर हिलाते रहे, क्योंकि स्कूल का धर्म शास्त्र कहता है—**बॉस, बॉस होता है!**


सौभाग्य वश मुझे इतनी बातें कभी भी जिंदगी में नहीं सुननी पड़ी थी ( कम बोलने वाले को यह सुविधा उपलब्ध रहती है ) जिंदगी में पहली बार इतना कुछ सुनना और सहना 😥


पेट की भूख ने और अधिक सुनने से इंकार कर दिया।

मैंने कहा मैडम - क्या हम लोगों को आप लीजर में अगले शिक्षक के घंटी में नहीं भेजते हो ???


मैडम आपने पूछा हम से - क्यों ? क्या हुआ ? आखिर क्यों हमलोग समय पर नहीं आ सके ?

आपकी कुर्सी को अधिकार के साथ कुछ कर्तव्य भी जुड़े हैं ???

अपने मातहत का खोज-खबर भी लेना आपके कर्तव्य में आता है।


हेडमिस्ट्रेस की जैसे तन्द्रा टूटी - क्यों, क्या हुआ?


हमने सारी घटना उन्हें बताया, ऐसा लग रहा था जैसे वो थोड़ी नरम हो गई।


सर को देखकर आश्चर्य हो रहा था, मुझे कि ऐसे में चुप क्यों हैं ? मन मेरा उनके चुप्पी का कारण ढूंढ रहा था। मेरी एक बिमारी है - कारण ढूंढने की।

मुझे भी शायद न्यूटन बनना था, नहीं बन पाई 😀 लेकिन यह बिमारी से बहुत सारे कारणों का पता लगाया 😊

मेरी खोज में मुझे जो नतीजे मिले उसका सार यही निकला 🤔


1)- एक सर प्रोवेशन में है,

उससे भी बड़ी बात है ❓

2)- दूसरी वो मुस्लिम है।


कारण जो भी रहा हो हमने ना पूछा ना उन्होंने कोई सफाई दी।


मेरी एक आदत सी रही है माहौल को ज्यादा भारी ना बना रहने दिया जाए ।


मैडम की नजरों में मेरे लिए हमेशा से बहुत प्यार सम्मान रहा है ( शायद अतिरिक्त प्यार का जो मैडम का मेरे प्रति रहा🙏) मेरी हिम्मत बढ़ती रही।

मैंने कहा - मैडम यह तो समझिए सर के कारण हम लौट कर आ गए, वरना घर जाकर नाश्ता चाय बनाकर पीकर आते 😀

सर प्रोवेशन है 🤔हम तीनों का तो प्रोवेशन समाप्त हो गया है 😂😂😂

सरकारी नौकरी है डर किस बात का 😂😂😂

इस तरह वहां का माहौल तो बदल गया लेकिन हमारी उर्दू सीखने का जूनून 😭 समाप्त हो गया। हम तीन शिक्षिका जो उर्दू सीखने चले थे अपनी पुस्तक कॉपी समेट कर बस्ते में डाल दिया।


नोट - अब अगला शगल 🤔 जो उर्दू शब्द के अर्थ नहीं समझ आती सर से पूछ लेती थी। इस तरह वो हमारे गुरु बने रहे।

बाद में उर्दू के शिक्षक भी आए, मेरे विद्यालय में उर्दू की पढ़ाई भी शुरू हो गई।

लेकिन अब तक

**हम अपने मन को समझा चुके थे ** हमारी किस्मत में उर्दू सीखना नहीं लिखा है।

अगले जन्म में हिंदी और उर्दू दोनों पढ़ना है बचपन में ही 🙏




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