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परिंदें पालने वाले कभी ऐ सोचा नहीं करते


शिकवा नहीं करती

(1)

बचपना अब भी जिंदा है मुझमें 

मैं अपनी ही शैतानी से डरती हूं।


किस्से मशहूर होना है तो हो जाए।

आधी- अधूरी कहानी से डरती हूं।


मैं भी लगा लेती दिमाग रिश्तों में।

बस दिल की मनमानी से डरती हूं।


झुका लेती हूं मैं अब नज़रें अपनी।

बहारों की अल्हड़ रवानी से डरती हूं।


हंस कर दो बातें कर गम बांट लेती हूं।

आदत यह नशा ना बन जाए डरती हूं।


(2)


नफ़रत एक बार मारे मुहब्बत बार-बार मारे।

एकबार मरने से नहीं हर पल मरने से डरती हूं।


नफरत करने वाले हजारों मिलते हैं तो मिल जाए।

ऐ खुदा इश्क ना कभी किसी के जिंदगी में आए।


प्यार या इश्क की तलब ज़हन तक जाती है।

यह तलब वो नशा है क़ब्र तक साथ जाती है।


ना मिले तुम कभी हमसे ना हम कभी मिले।

दगा ना किया तुमने ना दगाबाज हम निकले।


हम तन्हाई से डरते रहे तुम रुसवाई से डरते रहे।

हम कुछ कहा नहीं करते तुम कुछ सुना नहीं करते।


कहानी रही जैसी की तैसी किरदार बदल डालें।

तुम रुसवाई से डरते रहे हम शिकवा नहीं करते।


कहने को तो बहुत कुछ था अगर कहने पर आते हम। 

हम तुमसे कुछ कहा नहीं करते, तुम सुना नहीं करते।


पंख काटकर परिंदों को कहना तुम उड़ जाओ।

परिंदों को पालने वाले कभी सोचा नहीं करते❓


पंख काटकर छोड़े परिंदों कि है ऐ कैसी आज़ादी।

है ऐ कैसी आजादी हम अब तुमसे पूछा नहीं करते।


मजबूरी थी तो बस इतनी सी थी मजबूरी अपनी।

मैं बेजुबान थी गूंगी थी, तुम तो पूरे के पूरे बहरे थे।

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