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Tere aankho me bebsi dekhi to chor diya

 



अंतर्मन से जाने क्या कुछ खिसक गया


शौक ए मंजिल की तरफ़ क़दम बढ़ाते गए।

रास्ते में पड़े पत्थर को हमसफर बनाते गए।


खाकर ठोकरे कभी फिसले कभी संभलते गए।

हम तो पत्थरों से जीने का सलीका सिखते गए।


जिन पत्थरों ने सिखाया मुझे जिंदगी जीने का हुनर।

उन बेजान पत्थरों को भगवान मान हम पूजते गए।


(2)


तुम रुठे हुए बहुत प्यारा लगता है।

तुम्हें अब रुठने पर मनाना छोड़ दिया।


रो- धोकर वापस बुला सकती थी।

तेरे आंखों में बेबसी देखी तो छोड़ दिया।


जितना झुक सकती थी झुकती गई।

गुंजाइश नहीं रही झुकने की छोड़ दिया।


अनुनय - विनय, याचना सब बेकार है।

रिश्ते में नहीं ज़बरदस्ती की दरकार है।


छोड़ने गई दरवाजे तक आंसू रोके रही।

लौटी तो आंखों में आंसू की आर्तनाद थी।


उसने साथ छोड़ने की ज़िद बना रखी थी।

गले लगकर मैंने विदा,उसने अलविदा कहा।


तेरे जाने से अस्तित्व में खालीपन आ गया।

मेरे अन्तर्मन से जाने क्या कुछ खिसक गया।


अकेलापन कितना भी भयावह हो लेकिन,

धोखा देने वाला को दुबारा मौका नहीं देना।


प्रेम, प्यार, मुहब्बत, इश्क तो एक ही होता है।

तेरे तरफ से अंत वहीं मेरे लिए अनन्त हो गया।


भ्रमित मन भावनाओं की कठपुतली हो गया।

झूठ कोहरे सा अस्थाई प्रेम था चिरस्थाई हो गया।





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