मोहब्बत V/S आदत
वक़्त ने कहा —
"आदतें छूट जाती हैं--
जैसे बचपन की गुड़ियां छूटी,
जैसे पुरानी गलियों के साथी।
पर दिल ने कहा —
"मोहब्बत नहीं जाती,
वो तो किसी कोने में
साँस लेती रहती है,
चुपचाप, मगर ज़िंदा।"
अगर कोई दूर हो जाए,
और तुम फिर भी
उसके लिए दुआ माँगो —
तो समझो, ये आदत नहीं,
ये मोहब्बत है।
आदत —
पास हो तो चैन,
दूर हो तो बेचैनी।
मोहब्बत —
दूर हो जाए तो भी
एक सुकून छोड़ जाती है,
दूर होती दिखती होती नहीं।
एक अपनापन।
आदत--
डरती है डराती भी है,
कि कहीं खो न जाए।
मोहब्बत--
आज़ाद करती है,
चाहे पास रहे या दूर,
वो बस दिल से रहे।
कभी-कभी आदतन--
भ्रम आँखों में उतर जाता हैं,
और हम सोचते हैं —
ये मोहब्बत है।
पर वो सिर्फ आदत होती है।
तो पूछो खुद से —
अगर वो ना रहे,
क्या तुम फिर भी
उसके लिए दुआ करोगे?
अगर दिल कहता है,—हां,तो ये मोहब्बत है।
वरना आदत का----सबसे बड़ा धोखा यही है।
वो मोहब्बत के रुप में आकर भ्रमित करता है।
हमारे दिल और दिमाग पर ऐसे राज करती है।
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