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भविष्य से डरने लगी हूं

Iss baar Lagta nahi Jakhm Bharta huva

 (1)
भविष्य की राह से अब डरने लगी हूं,  

जो सोचा था, वो कर नहीं पा रहा।

जिसे चाहा, हर पल उसे खोता रहा । 

दिल टूटा नहीं,पर दरका सा लग रहा।


मैं खुद से ही बार-बार मात खाता रहा।

  

ज़ख्मों को अपने मैं सहलाता रहा।

हर चाहत को हर दम मैं खोता रहा,  

घायल मन फिर भी मुस्काता रहा।


सदमे से उबरने के पहले सदमे आते रहे।


ऐसा प्रलय जीवन में आया है सखे,  

तेरे बिछड़ने का ग़म खा रहा है सखे।  

तेरा साथ क्या छूटा, मैं अकेला हुआ,


इसबार लगता नहीं, ज़ख्म भरता हुआ


(2)


कुछ लिखता हूं फिर उसे मिटाता हूं।

तुमको नहीं मैं खुद को आजमाता हूं।


सोचता हूं आखिर ऐसा क्यों कर हुआ?

तेरे आगोश से निकला, तो क्या रह गया?


तन्हाई की चादर ओढ़े, 

मैं खामोशी से बातें करता हूं,  

हर आहट में तेरा नाम ढूंढता हूं 

हर सन्नाटे से अब डरता हूं।


वो जो उम्मीद तुमसे थी, 

अब धुंधली सी लगती है,  

जैसे कोई सपना आने से, 

पहले निगोड़ी नींद टूटती है।


हर मोड़ पर खुद को ही खोता रहा,  

जीवन कोई भूल-भुलैया बन गया।


तेरी यादें जब से मेरी सांसों में घुल गई हैं,

धड़कने उससे बचकर निकलना भूल गई।

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