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संस्मरण - समंदर, मैं और भय


नवंबर की खट्टी‑मीठी यादें और दिसंबर का स्वागत


त्योहारों की रोशनी और यात्रा की उमंग में मेरा मन 😊

नवंबर की शुरुआत दिवाली और छठ पर्व की रौनक से हुई। घर‑आंगन में दीपों की चमक थी, लेकिन इसी बीच सर्दी‑खांसी ने दस्तक दी। 

तबीयत नासाज थी, सबके मना करने पर भी मैंने हार नहीं मानी और निकल पड़ी जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा।

एक तरफ वहाँ भगवान जगन्नाथ के दर्शन और समुद्र स्नान का आनंद जीवनभर याद रहने वाला अनुभव बन गया।  


दूसरी ओर समुद्र की लहरें और डर का वह पल आज भी बदन में सिहरन पैदा कर दे रहा है।

समुद्र की विशाल लहरें कभी खेल जैसी लगीं, तो कभी जीवन का सबक। छोटी-छोटी लहरें आती रही, पर यह क्या एक बड़ी लहर ने मुझे खींच लिया, और उस क्षण लगा कि शायद अब सांसें थम जाएँगी। मेरे बच्चे ने मुझे बचाया, लेकिन दिल की धड़कन देर तक तेज रही।


वैसे तो जिंदगी छोटी-छोटी लहरों का जखेड़ा है परंतु जिंदगी में कोई बड़ी लहर आ जाए तो इंसान को संभलना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में सहारे की आवश्यकता होती है।

 

पतिदेव को फोन पर बताया तो पतिदेव ने मजाक में कहा—“समुद्र कुछ भी रखता नहीं, अगर ले जाता तो फिर किनारे फेंक देता है।”

यह हल्की‑फुल्की बात भी उस समय असहनीय लगी ,उस डर को गहराई से याद दिला गई। 


बीमारी और आत्मविश्वास

यात्रा और बाहर का खाना मुझे बीमार कर गया। नाक बंद, सांस लेने में कठिनाई, बुखार और घबराहट—ऐसा लगा कि जीवन की डोर छूट रही है। सारे अपनों की यादें आने लगी, ऐसा लगने लगा अब शायद किसी को नहीं मिल पाउंगी।

घरवाले की नाराज़गी के बाबजूद लेकिन मैंने एलोपैथी दवा से दूरी बनाए रखी। तुलसी, हल्दी और घरेलू उपायों के साथ योग और प्राणायाम ने मुझे धीरे‑ धीरे ठीक किया। बिछावन पर भी अनुलोम‑विलोम करते हुए मैंने खुद को संभाला।  


योग का सहारा

जैसे ही स्वास्थ्य सुधरा, मैं फिर से योगा मैट पर लौट आई। सच यही है कि योग के बिना अब दिन अधूरा लगता है। दरअसल त्योहार और सफ़र के कारण मैंने योगा छोड़ रखा था।

नवंबर में योगा सर ने हमें देश की अनगिनत भाषाओं से परिचित कराने का प्रयास किया, जो सीखने की एक सुंदर यात्रा रही।  


दिसंबर की नई शुरुआत

नवंबर ने खुशी और ग़म दोनों दिए, लेकिन दिसंबर का स्वागत अपार खुशी से करनी है। साल का अंतिम महीना, नए संकल्पों का समय।


कन्हैया से मिलकर आ गई अब पुरूषोत्तम राम से मिलने की तैयारी है।

इस बार दिसंबर में मैं राम जन्मभूमि अयोध्या जा रही हूँ—और सबसे बड़ी खुशी यह है कि पतिदेव भी साथ होंगे तो मोबाइल भी रहेगा, इसलिए होटल में ठहरते हुए भी योग का अभ्यास जारी रहेगा। मेरा संकल्प है—31 दिन में 31 दिन योगा मैट पर हाजिरी।  


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🌿 नवंबर ने मुझे सिखाया कि जीवन की हर छोटी-बड़ी लहर—खुशी, डर, बीमारी या यात्रा—योगा और आत्मविश्वास से पार की जा सकती है। दिसंबर मेरे लिए नई ऊर्जा और आध्यात्मिक यात्रा का महीना होगा❤️🙏

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