JINDAGI KA ANTIM PRAV
जिंदगी का सफर कुछ यूं तय किया,
कुछ लिखा कुछ अनलिखा रह गया।
उनके ही नज़रों की किड़किड़ी बनी,
जिनको मैंने ख़ुदा का था दर्ज़ा दिया।
बहुतों में एक बनकर रहना गवारा मैंने,
या मेरे खुदा उनको ऐ भी गवारा ना था।
जिनके अलविदा कहने को नकारती रही,
उनको आज अलविदा कह चल दिया मैंने।
जिंदगी थी तो सबकी जुस्त-जूं थी अपनी,
जिस्म के संग दिल भी तो जल गया मेरा।
मैंने जिंदगी में बेवफाई देखी ना थी,
मेरी जिद्द थी उसे जीभर देखने की।
मेरे दिल ने कब कहा तुम मेरे हो ?
दिल ने तो हरबार बस इतना कहा मैं तेरी हूं|
कैसे कह दूं तुम ग़लत थे या मैं ग़लत थी ?

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