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मेरी जिंदगी तो यारो खुली किताब सा था

मेरी जिंदगी तो यारो खुली किताब सा था

 धर्म-कर्म खानदान की दुहाई दोनों तरफ़ था।

मुहब्बत में यह इम्तिहान जो हम-दोनों का था।

खरीदारों की कमी ना थी हमारे शहर में मगर।

वह ऐसा शख्स था जो बिकने को तैयार न था।

जमाने के दर्द का बस इतना ही शबब देखने को मिला

शिकार कर सके ऐसा तीर कोई ना उसके कमान में था।

पढ़ने की फुर्सत ही कहां थी जमाने को वरना। 

मेरी जिंदगी तो यारो खुली किताब सा था।

जो कुछ भी कहा जुबान से सब सुनते ही रहें।

छुपाई वो लफ्ज़ जो उसके दर्दे दास्तान में था।

जो रक्स करते थे उनके आंखों में सैलाव सा था।

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