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अंत को अंत रहना कबूल था

 


अंत को अंततः बना डाला

आत्मसम्मान को गिरवी रखा 

अनमोल अमूल्य धरोहर मान उपहार जुटा रखा।

मैंने अपने जीवन का जिसको आधार बना रखा।


बस कुछ शब्द कागज़ क़लम ही तो थे धरोहर मेरे।


जाने वाले ने मेरा सारा सामान उठा डाला।

कल तक जिस शख्स से रही दोस्ती अपनी।

पलक झपकते मैं उसकी दोस्ती गवां डाला।

उसने अपने चेहरे से नकाब जो हटा डाला।


आत्मसम्मान को गिरवी रख कुछ रत्न जुटाया था।

वह मेरा रत्न और आत्मविश्वास साथ चुरा डाला।

अंत का अंत रहना भी कबूल था।

अंत को उसने अंततः कर डाला।


खुद की काबिलियत पर शक कर।

दिल का सुकून भरोसा सब खोया।


फितरत में बेइमानी नहीं थी उसकी।

कुदरत ने उससे नाइंसाफी कर डाला।


दोस्त था मांगा होता तो दे देती खुशी से।

विश्वास नहीं था मुझपर चोरी कर डाला।


शायद तनावपूर्ण लगी दोस्ती की डगर।

तनावमुक्त होकर अंततः कूच कर डाला।


विश्वास नहीं था चुरा कर ले गया।




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