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आत्मिक प्रेम मिले और मैं लीन हो जाऊं |
ना जाने कितनी बातें करनी थी तुमसे।
जो शायद अब कभी ना कर पाउंगी।
रहूंगी यहीं पर तुमको आवाज ना दे पाऊंगी।
कुछ टूटा है तो कुछ दरका है अंदर ही अंदर।
बिखरे टूकड़े कों समेटना दफ़न करना बाकी है।
मैं भूल जाऊंगी सब थोड़ा हमें वक्त तो दो।
सुन रखा है वक्त हर ज़ख्म भर देता है।
वक्त को मरहम लगाने की मुहलत तो दो।
सुन रखा है वक्त हर घाव का मरहम हैं।
मरहम को असर करने तक घाव टीसने दो।
सूख गया आंखों का समंदर बह गए आंसू।
बारिश को आने तो दो समंदर भरने तो दो।
आत्मिक प्रेम मिले और मैं लीन हो जाऊं।
प्रेम में मैं और मुझमें प्रेम को बसने तो दो।
जागते सोते यह प्रेम मेरी प्रेरणा बन जाए।
जन्म- जन्मांतर तक दिल में घर कर जाए।
विछोह में तेरी ही तेरी सूरत नज़र आए।
आंखें तुम्हारी छवि को समर्पित हो जाए।
प्रेम को जीवित रखने के लिए भाव काफ़ी है।
मेरे ह्रदय के अरमान और एहसास काफ़ी है।
जाओ तुमको अब इस बंधन से मुक्त करती हूं।
खुली हवा में सांस लो तुम जिसके अधिकारी हो।
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