जज़्बात मेरे मजाक बन कर ही रह गए। ज़ख्म दिखाई तो वो नमक छिड़क गए। तमाम उम्र सफ़र में साथ देने वाले भी, बीच राह में अकेला छोड़ कर चले गए। हम तो गैरो…
Read moreमैं बस उसी की अर्धांगिनी बनूंगी यह कविता स्त्री के ऐतिहासिक और पौराणिक प्रतीकों को पुनर्परिभाषित करती है — दुर्गा, गंधारी, मीरा, सीता, यशो…
Read moreस्त्री जो खुद को समझ चुकी अब वो समझाना छोड़ चुकी है कि उसे क्या चाहिए, क्या नहीं ? वो चुपचाप दिल से हटा देती है जो आत्मा को व्यथित करता हो…
Read moreप्रेम बहता है मौन में प्रेम बहता है मौन में, जैसे संध्या की आरती में🪔 बिना बोले जलता हो कोई दीप, जैसे किसी पीपल की छांव में, किसी ने चुप…
Read more(1) विश्वास और धोखे का स्वर) धोखा जब फूलों से पाया, अब कांटों का पेड़ लगाएंगे। ज़ख्मों से डरना छोड़ दिया, अब दर्द को गीत बनाएंगे। (2) दोस्…
Read moreसुबह से शाम तक समझौते पर जीने वाला जीते- जीते हुए वह थक गया होगा। अपना दर्द नहीं बता पाने वाला, तस्वीरों में बस मुस्कुराता होगा। लोग दुश्मनी को भी …
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